उत्तर वैदिक काल (Post Rig Veda Period)(1000-600 ई. पू. ) में छोटे-छोटे जन् आपस में मिलाकर एक बड़ी इकाई जनपद में परिवर्तित हो गये। ऐतरेय ब्राह्मण में पहली बार राष्ट्र शब्द का उल्लेख भी मिलता है।
उदाहरणार्थ पुरु भारत – कुरु एवं तुर्वश और क्रीवि मिलकर पांचाल हो गये। इस प्रकार राजा की महत्ता में वृद्धि हुई। राजा ने इसका फायदा उठाया और अपने पर से सभा और समिति के नियन्त्रण को समाप्त कर दिया। उत्तर-वैदिक काल में सर्वप्रथम समाप्त होनी वाली संस्था विद्थ थी।
इस काल में राजा अलग-अलग उपाधियां धारण करने लगे। उदाहरणार्थ-मध्यदेश के राजा को राजन, पूर्व देश के राजा को सम्राट पश्चिम के राजा को स्वराट और उत्तर के राजा को विराट एवं दक्षिण के राजा को भोज कहा गया जो राजा इन चारों दिशाओं के राजाओं को जीत लेता था उन्हें एकराट कहा जाता था। उत्तर वैदिक काल में कौशांबी नगर में पहली बार पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ था
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