छत्तीसगढ़ का रामायण कालीन इतिहास
रामायण महाकाव्य के अनुसार तात्कालिक छत्तीसगढ़ दक्षिण कौशल का भाग था । इसकी राजधानी कुशस्थली थी । भानुमंत के पिता महाकौशल के नाम से इस क्षेत्र का नामकरण कोशल प्रदेश हुआ । राजा भानुमंत की पुत्री कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से हुआ था । छत्तीसगढ़ श्री राम का ननिहाल था ।
रामायण महाकाव्य के अनुसार राम के वनवास का अधिकांश समय यहां व्यतीत हुआ । सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी, सीताबेंगरा तथा लक्ष्मणबेंगरा की गुफा में काफी समय व्यतीत किए । यहीं पर किष्किंधा पर्वत में बाली वध का प्रमाण मिलता है।
बारनवापारा अभ्यारण में स्थित तुरतुरिया वाल्मीकि ऋषि का आश्रम था । जहां लव कुश का जन्म हुआ । महानदी का उद्गम स्थल सिहावा को श्रृंगी ऋषि के आश्रम का गौरव प्राप्त है ।
कांकेर जिला में आज भी पंचवटी स्थल है । रामायण महाकाव्य के अनुसार यहीं से सीताजी का हरण हुआ था । दंडकारण्य प्रदेश को इक्ष्वाकु के पुत्र दंडक का साम्राज्य माना जाता है । रामायण महाकाव्य में दंडकारण्य का सर्वाधिक उल्लेख किया गया है ।
जांजगीर-चांपा में स्थित खरौद में खर दूषण का साम्राज्य था । यहीं पर लक्ष्मण द्वारा स्थापित लखेश्वर महादेव मंदिर लाखा चाउर मंदिर है । शिवरीनारायण को शबरी आश्रम के रूप में चिन्हित किया जाता है ।
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