माओपाटा नाट्य - छत्तीसगढ़ का लोक नाट्य
बस्तर का दूसरा नाट्य माओपाटा है जो यहाँ कि मुरिया जन जाति में प्रचलित है।यह लोक नाट्य शिकार कथा पर आधारित है जिसमे आखेट पर जाने कि तैयारी से लेकर शिकार पूर्ण हो कर शिकारियों के सकुशल वापस आने पर समारोह मनाने कि तैयारी तक कि घटनाओं का नाटकीय मंचन किया जाता है।
नाट्य क्षेत्र के विद्वानों का मत है कि नाट्य विधा का उद्भव आदिम काल में आखेट प्रसंगों के नाटकीय वर्णन से ही हुआ होगा। आखेट के पश्चात जब शिकारी वापस आते थे तो शिकार के अवसर पर घटित रोमांचक घटनाओं का वर्णन वह नाटकीय ढंग से अपने कबीले के लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करते थे।इसी बिंदु पर नाटक का उद्भव हुआ होगा।
आखेट से सकुशल लौटने पर वह अपने देवी देताओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करते थे और इस अवसर पर वह अपने हथियारों और पैरों को भूमि पर पटक कर अपने भावनाएँ अभिव्यक्त करते थे और उल्लास पूर्वक समूह रूप में चक्कर लगते थे या पंक्तिबद्ध हो कर देवताओं का अभिवादन करते थे और प्रन्नता व्यक्त करने के लिए भांति भांति की चीत्कारें और आवजे निकालते थे। इन अभिव्यक्तियों ने ही कालांतर में नृत्य और गीतों का रूप ग्रहण किया होगा।
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