छत्तीसगढ़ का लोक नाट्य
छत्तीसगढ़ अपनी लोक परम्पराओं के मामले में अत्यंत समृद्ध है। यहाँ की लोक संस्कृति जहाँ सम्पूर्ण देश के प्रभावों को आत्मसात करती रही, वहीं दूसरी ओर यहाँ के भीतरी आदिवासी अंचल लंबे समय तक बाहरी दुनिया के लिए लगभग बंद जैसे रहे। इसके कारण आदिवासी कला बाह्य प्रभावों से बची रही। उपरोक्त कथन विरोधाभासी प्रतीत होता है परन्तु यहाँ की भौगौलिक स्थिति में यह बात सही है। इस तथ्य का प्रमाण यहाँ के आदिवासियों के लोक नृत्य एवं लोक गीत हैं बस्तर से ले कर सरगुजा तक फैले हुए विभिन्न आदिवासी समुदायों में विद्यमान उनके नृत्यों को ध्यान पूर्वक देख जाए तो ज्ञात होता है कि अनेक आदिवासियों ने अपने नृत्य, गीत, मिथ कथाएँ, संगीत आदि सभी कला रूपों को काफी हद तक सुरक्षित रखा है। सरगुजा रायगढ़ ने सरहुल, करमा छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में साल्हो (ददरिया) डंडा, सूवा नृत्य तो बस्तर में हुलकी ककसाड और गौर सींग नृत्य सभी अपनी अपनी परंपरागत शैलियों में सुरक्षित है। इन नृत्य एवं गीतों के अलावा यहाँ कुछ परंपरागत समृद्ध मंचीय कला रूप भी विद्यमान है।
EmoticonEmoticon