Wednesday, 21 August 2019

महाजनपद का निर्माण कैसे और किस रूप में हुआ ?

Rise of Mahajanapada

भारतीय इतिहास में आर्थिक और राजनैतिक विकास की दृष्टि से ईसापूर्व छठी शताब्दी का समय बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हो रहा था और भारत में शहरी सभ्यता के उदय के साथ ही बौद्ध और जैन धर्मों का भी आविर्भाव हो रहा था। इस समय में लिखे गए बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अर्ध-बंजारा जनजाति स्वयं को कृषि आधारित समाज में ढालने का प्रयत्न कर रही थी। इसके साथ ही व्यवस्थित राजनैतिक तंत्र और विस्तृत व्यापारिक तंत्र के कारण विभिन्न राज्यों का उदय हुआ और इन्हें व्यक्तिगत रूप से ‘जनपद’ व सामूहिक रूप से ‘महाजनपद’ का नाम दिया गया।

सभी जनपदों के नाम उस स्थान पर बसी क्षत्रिय जाती के आधार पर दिये गए थे। इन जनपदों की सीमाओं का निर्धारन नदियों , जंगलों या पर्वत श्रंखलाओं जैसे हिमालय के आधार पर किया गया था।  इतिहासकारों का इन जनपदों की संख्या को लेकर मतभेद है। 

जैसे पाणिनी के अनुसार इन निर्मित जनपदों की संख्या 22 है जबकि बौद्ध ग्रन्थों -अंगुतर निकाय, महावस्तु  के अनुसार 16 है। लेकिन एक बात में सभी एकमत हैं कि इन सभी में मगध, कोसल और वत्स महत्वपूर्ण जनपद माने जाते थे।

सभी 16 जनपदों की अपनी एक राजधानी होती थी जिसके लिए एक सुदृढ़ किले का निर्माण किया जाता था। इस किले की देखभाल एक प्रशिक्षित सेना द्वारा किया जाता था। जनपद के मुखिया या शासक द्वारा सेना और प्रशासन के रखरखाव के लिए जनता से कर के माध्यम से धन प्राप्त किया जाता था।


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