Monday, 19 August 2019

ऋग्वैदिक काल की वस्त्र, आभूषण, आर्थिक दशा, कृषि

Clothing, jewelery, economic condition, agriculture of the Rig Vedic period

सामान्यतः तीन प्रकार के वस्त्र प्रचलित थे
  • नीवी:-अन्दर पहनने वाला वस्त्र।
  • वासः-सामान्य वस्त्र।
  • विश्वास:- ऊपर से पहना जाने वाला वस्त्र।
सूती कपड़ा ऊनी कपड़ा आदि का उल्लेख मिलता है कपड़ो में कढ़ाई भी होती थी। पगड़ी को ऊष्णीय कहा गया।
आभूषण:-ऋग्वेद में न तो लोहें का उल्लेख है और न ही चांदी का केवल एक ही धातु अयस का उल्लेख मिलता है। अयस का अर्थ ताँबा या काँसा से लगाया गया है। ऋग्वेद में स्वर्ण आभूषणों का उल्लेख है जिसमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं।
  • रुक्म:- यह स्वर्ण का गले का हार था।
  • निष्क:- यह स्वर्ण ढे़र था जिसका उपयोग विभिन्न कार्यों में होता था जैसे-गले का हार एवं तौल या माप की इकाई के रूप में।
  • मन्:- यह भी स्वर्ण ढेर था।

आर्थिक दशा:- 
ऋग्वैदिक युग में कृषि की अपेक्षा पशु पालन का ज्यादा महत्व था क्योंकि आर्य कबायली थे और भम्रण शील थे उनका जीवन स्थाई नहीं था ऐसी दशा में पशु पालन का महत्व बढ़ जाता है। ऋग्वेद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पशु गाय थी।

गाय:- ऋग्वेद में 176 बार गाय का उल्लेख मिलता है इससे इसकी महत्ता का पता चलता है अधिकांश लड़ाईयां गायों के लिए ही होती थी गायों के लिए निम्न शब्द प्रयोग किये जाते थे। इसे वैदिक काल में सम्पत्ति के रूप में प्रयोग किया जाता था जो कई के रूप में जानी जाती थी।



गविष्टि:-वैसे गविष्टि का साहित्यिक अर्थ गायों का अन्वेषण है परन्तु यह शब्द युद्ध का प्रयाय बन गया था क्योंकि अधिकांश पशुओं की चोरियां गायों के लिए ही होती थी। ’पणि’ नामक व्यापारी पशुओं की चोरी के लिए विख्यात थी। एक अन्य प्रकार के दान शील व्यापारी वृबु का भी उल्लेख है।

अघन्या:- इसका साहित्यिक अर्थ न मारने योग्य है।
अष्ट कर्णी:- इसका अर्थ जिसके कान पर 8 का निशान हो अथवा छेदे हुए कान वाली।


2. अश्व:- गाय के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पशु, घोड़ा था इसका उपयोग मूलतः रथों में होता था। ऋग्वेद में बैल, भैंसा, भेंड़, बकरी, ऊँट आदि सभी पशुओं का उल्लेख है परन्तु सिन्धु काल में प्रचलित बाघ और हाथी का उल्लेख नही है।


कृषि:- ऋग्वेद में कृषि का स्थान भी महत्वपूर्ण था परन्तु ऋग्वेद के केवल 24 मंत्रों में ही कृषि का उल्लेख है। कृषि से सम्बन्धित निम्नलिखित शब्द महत्वपूर्ण है-

1. चर्षणी-कृषि या कृष्टि
2. क्षेत्र-जुता हुआ खेत
3. उर्वरा-उपजाऊ भूमि
4. लाडग्ल-हल
5. वृक-बैल
6. कीवास्-हलवाहे
7. सीता-हल से बनी हुई नालियां या कूड़
8. खिल्यः दो खेतों के बीच छोड़ी गई पट्टी-इस शब्द का प्रयोग परती ऊसर आदि भूमियों के लिए भी किया गया है यह ऐसा क्षेत्र था जहाँ घास उग आता था।
9. करीस-गोबर का खाद
10. अवट्-कुएँ के लिए
11. तितऊः चलनी
12. उर्दर:- मांपने का बर्तन

ऋग्वेद में एक ही फसल मव का उल्लेख है जो जौ गेंहू के लिए प्रयुक्त हुआ है।


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