प्रथम पूज्य गणेश जी की आरती में एक दंत दयावंत जैसे शब्द हैं। क्या आपको पता है कि गणेश जी एक दंत कैसे हुए। हुए भी तो किस वजह से और कहां। हम आपको ले चलते है उस स्थान पर जहां परशुराम के फरसे से खंडित होकर गणेश जी का दांत गिरा था। ये है दंतेवाड़ा में ढोलकल पहाड़ी। यहां गणेश और परशुराम में युद्ध हुआ था। इसके प्रमाण पुराणों में भी मिलते हैं। जानिए क्या हुआ था यहां...
- दंतेवाड़ा से करीब 22 किमी दूर ढोलकल पहाड़ी पर बड़े आराम की मुद्रा में विराजे गणेश जी की प्रतिमा है।
- प्रतिमा के सामने खड़े होने पर चारो ओर सैकड़ों फीट गहरी खाई और घना जंगल है। ये प्रतिमा कब और कैसे यहां आई किसी को पता नहीं पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो ये प्रतिमा ११वीं सदी की है।
- तब यहां नागवंशीय राजाओं का शासन था। प्रतिमा में गणेश जी के पेट पर नाक का चित्र है। ये तथ्य इस बात को और मजबूती देता है कि ये प्रतिमा नागवंशीय राजाओं के काल का है।
- पर यहां कैसे पहुंची और क्यों, इसके बारे में अभी कोई साक्ष्य नहीं है।
लोक कथाएं कहती हैं कहानी, पुराण में हैं ये सब
- ब्रह्मवैवर्त पुराण के एक कथानक में बताया गया है कि एक बार कैलाश पर परशुराम भगवान शंकर से मिलने पहुंचे।
- वहां गणेश जी पहरेदारी पर थे। परशुराम ने जिद की तो गणेश जी ने अपनी सूंढ़ में उन्हें लपेट लिया और तीनों लोगों के चक्कर लगाते हुए भू-लोक पर ले आए। यहां परशुराम को एक पहाड़ी पर जोर पटक दिया। वे अचेत हो गए।
- जैसे ही उन्हें होश आया तो कुपित होकर उन्होंने फरसे से गणेश जी पर वार किया जिससे उनका एक दांत टूटकर गिर गया।
- लोक कथाएं बताती हैं कि ये लड़ाई दंतेवाड़ा के इसी ढोलकल पहाड़ी पर हुई थी। फरसे के वार से दांत टूटने के चलते पहाड़ी के नीचे स्थित गांव का नाम फरसपाल है।
अद्भुत है ये मूर्ति
- चूंकि गणेश जी का आकार गोल-मटोल ढोलक जैसे है इसलिए इनका नाम भी ढोलकल गणेश जी है।
- ये प्रतिमा करीब 100 किलो की है जो ग्रेनाइट स्टोन से बनी है।
- यह समुद्र तल से 2994 फीट ऊंची चोटी पर स्थित है। स्थानीय आदिवासी बताते हैं कि ढोलकल पहाड़ी के सामने एक और पहाड़ी है जहां सूर्यदेव की प्रतिमा थी जो 15 साल पहले चोरी हो गई।
यहां पहुंचना है बहुत दुर्गम
- गणेश की दर्शन करना काफी दुर्गम है। यहां आने के लिए दंतेवाड़ा से 18 किमी दूर फरसापाल जाना पड़ता है।
- उसके बाद कोतवाल पारा होते हुए जामपारा पहुंचकर गाड़ी वहीं पार्क करनी होती है। यहां स्थानीय आदिवसियों के सहयोग से पहाड़ी पर 3 घंटे की दुर्गम चढ़ाई के बाद पहुंचा जा सकता है।
- बारिश के दिनों में रास्ते में पहाड़ी नाले बहने लगते हैं जिससे ये मार्ग और दुर्गम हो जाता है।
Credit : https://www.bhaskar.com/news/c-16-story-about-dholkal-ganesh-ji-dantewada-chhattisgarh-ra0392-NOR.html?seq=1
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