छत्तीसगढ़ के साहित्यकार का संक्षिप्त परिचय - पंडित सुंदरलाल शर्मा
पंडित सुंदरलाल शर्मा (21 दिसम्बर 1881 - 28 दिसम्बर 1940), छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। वे कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवक, इतिहासकार, स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें 'छत्तीसगढ़ का गांधी' कहा जाता है। उनके सम्मान में उनके नाम पर पण्डित सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ की स्थापना की गई है।
साहित्य के क्षेत्र में उनका अवदान लगभग 20 ग्रंथ के रुप में है जिनमें 4 नाटक, 2 उपन्यास और काव्य रचनाएँ हैं। उनकी "छत्तीसगढ़ी दानलीला" इस क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है। कहा जाता है कि यह छत्तीसगढ़ी का प्रथम प्रबंध काव्य है।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए आपने अथक प्रयास किया। आपके हरिजनोद्धार कार्य की प्रशंसा महात्मा गांधी ने मुक्त कंठ से करते हुए, इस कार्य में आपको गुरु माना था। 1920 में धमतरी के पास कंडेल नहर सत्याग्रह आपके नेतृत्व में सफल रहा। आपके प्रयासों से ही महात्मा गांधी 20 दिसम्बर 1920 को पहली बार रायपुर आए।
असहयोग आंदोलन के दौरान छत्तीसगढ़ से जेल जाने वाले व्यक्तियों में आप प्रमुख थे। जीवन-पर्यन्त सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श का पालन करते रहे। समाज सेवा में रत परिश्रम के कारण शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर 1940 को निधन हुआ। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहित्य/आंचिलेक साहित्य के लिए पं. सुन्दरलाल शर्मा सम्मान स्थापित किया है।
पँ सुंदरलाल शर्मा
जी की रचनाएँ : दानलीला (खंडकाव्य), राजिम
क्षेत्र महात्मय, श्री प्रहलाद चरित (नाटक),
श्री ध्रुवचरित (नाटक) , करुणा पच्चीसी, विक्टोरिया वियोग, श्री रघुनाथ गुण कीर्तन,
प्रताप पदावली, छत्तीसगढी रामलीला, सतनामी भजनमाला,
पत्रिका :
मासिक पत्रिका 'दुलरवा' का प्रकाशन, रायपुज्ञ जेल से 'जेल पत्रिका' (श्री कृष्ण
जन्म स्थान पत्रिका) आदि;
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